الخَشیَة
ख़ुदा का भय
الکتاب
क़ुरान मजीद
‘‘ اِنَّمَا یَخشَی اللہَ مِن عِبادِہِ العُلَماءُ انَّ اللہَ عَزیزٌ غَفورٌ’’
{ अल्लाह से उस के बन्दों में से ज्ञानी लोग भय खाते हैं । बेशक , अल्लाह अज़ीज़ , ग़फ़ूर व रहीम है । ( सूरह फ़ातिर , आयत संख्या २८ ) }
‘ اِنَّ الَّذینَ اُوتُوا العِلمَ مِن قَبلِہِ اذا یُتلیٰ عَلَیْھِم یَخِرّونَ لِلَٔاذقانِ سُجَّداً * و یَقولونَ سُبحانَ رَبَّنا ان کانَ وَ عدُ ربَّنا لَمَفعولًا* و یَخِرّونَ لِلَٔاذقانِ یَبکونَ و یَزیدُھُم خُشوعًا’’
{ बेशक , जिन लोगों को इस से पूर्व ज्ञान दे दिया गया है , जब उन पर आयात का पाठ किया जाता है , तो वे मुंह के बल सजदे में गिर पड़ते हैं , और कहते हैं , कि हमारा रब बड़ा ही पाक व पाकीज़ा है । उस का वादा निश्चित रूप से पूरा हो कर रहेगा , और वे मुंह के बल गिर कर रोते हैं , जिस से उन के ख़ुशू व ख़ुज़ू में वृद्धि होती जाती है । ( सूरह बनी इसराईल , आयत संख्या १०७ से १०९ }
الحدیث
हदीस शरीफ़
٢١٤رسول اللّٰہؐ : فی وَصِیَّتِہِ لِأَ بی ذَرٍّ : یا أباذَرٍّ، مَن اُوتِیَ مِنَ العِلمِ ما لایُبکیہِ لَحَقِیْقٌ أن یَکونَ قَد اُوتِیَ عِلمًا لا یَنفَعُہُ، لِأَنَّ اللّہَ نَعَتَ العُلَماءَ فَقالَ عَزّ وَجَلَّ: (انَّ الَّذینَ اُوتُوا العِلمَ مِن قَبلِہِ اذا یُتلیٰ عَلَیھِم یَخِرّونَ لِلَٔاذقانِ سُجَّدًا * و یَقولونَ سُبحانَ رَبَّنا ان کانَ وَعدُ ربِّنا لَمَفعولًا * و یَخِرّونَ لِلَٔاذقانِ یَبکونَ و یَزیدُھُم خُشوعًا)
२१४ . रसूले - ख़ुदा ( सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ) अबू ज़र को वसीयत करते हुए फ़रमाते हैं , "ऐ अबू ज़र , जिस व्यक्ति को ऐसा ज्ञान प्रदान किया गया हो , जो उस को अल्लाह के भय से रुला न सके , तो उस को ऐसा ज्ञान दिया गया है , जो बेकार है , क्यों कि ख़ुदा ने ज्ञानियों की तौसीफ़ करते हुए फ़रमाया है , "बेशक , जिन लोगो को इस से पूर्व ज्ञान दिया गया है , जब उन पर आयतों का पाठ किया जाता है , तो वे मुंह के बल सजदे में गिर पड़ते हैं , और कहते हैं , कि हमारा रब बड़ा ही पाक व पाकीज़ा है , और उस का वादा पूरा होने वाला है । वे मुंह के बल गिर कर रोते हैं , जिस से उन के ख़ुशू व ख़ुज़ू में वृद्धि हो जाती है ।"
٢١٥) عنہؐ:کَفیٰ مِنَ العِلمِ الخَشیَةُ۔
२१५ . रसूले - ख़ुदा ( सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ) : ज्ञान से ख़ुदा का भय उत्पन्न हो जाए , यही पर्याप्त है ।
٢١٦۔ الامام علیؑ: َسبَبُ الخَشیَةِ العِلمُ۔
२१६ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : ख़ुदा के भय का कारण ज्ञान है ।
٢١٧۔ عنہؑ: اذا زادَ عِلمُ الرَّجُلِ زادَ أدَبُہُ و تَضاعَفَت خَشیَتُہُ لِرَبِّہِ۔
२१७ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : जितना अधिक व्यक्ति का ज्ञान बढ़ता जाता है , उतना ही अधिक उस के अदब में वृद्धि होती जाती है , और उस के भीतर ख़ुदा का भय भी दो गुना हो जाता है ।
٢١٨۔ عنہؑ: لا عِلمَ کَالخَشیَةِ۔
२१८ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : ( ख़ुदा के ) भय के जैसा कोई ज्ञान नहीं है ।
٢١٩۔ عنہؑ: کَفیٰ بالخَشیَةِ عِلمًا۔
२१९ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : ज्ञान के लिये ( ख़ुदा का ) भय पर्याप्त है ।
٢٢٠۔ عنہؑ: حَسبُکَ مِنَ العِلمِ أن تَخشَی اللہ عزّ وجلّ، و حَسبُکَ مِنَ الجَہلِ أن تُعجَبَ بِعَقلِکَ۔ أو قالَ: بِعِلمِکَ۔
२२० . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : तुम्हारे ज्ञान के लिये यही पर्याप्त है , कि तुम अपने मन में ख़ुदा का भय रखो , और तुम्हारी जिहालत के लिये यही पर्याप्त है , कि तुम अपनी बुद्धि या ज्ञान ( रिवायत करने वाले की ओर से सन्देह है ) पर प्रसन्न हो जाओ ।
٢٢١۔ عنہؑ: غایِةُ المَعرِفَةِ الخَشیَةُ۔
२२१ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : मारिफ़त की अन्तिम सीमा ख़ुदा का भय है ।
٢٢٢۔ عنہؑ: أعلَمُکُم أخوَفُکُم۔
२२२ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : तुम लोगों में सब से बड़ा ज्ञानी वह है , जो अपने मन में सब से अधिक ( ख़ुदा का ) भय रखता हो ।
٢٢٣۔ عنہؑ: کُلُّ عالِمٍ خائفٌ۔
२२३ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : ख़ुदा के भय
इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : प्रत्येक ज्ञानी व्यक्ति अपने मन में ख़ुदा का भय रखता है ।
٢٢٤۔ عنہؑ: أعظَمُ النّاسِ عِلمًا أشَدُّھُم خَوفًا لِلّہِ سُبحانَہُ۔
२२४ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : लोगों में सब से बड़ा ज्ञानी वह है , जो उन में ख़ुदा का भय सब से अधिक रखने वाला है ।
٢٢٥۔ عنہؑ: غایَةُ العِلمِ الخَوفُ مِنَ اللّٰہِ سُبحانَہُ۔
२२५ . इमाम अली ( अलैहिस्सलाम ) : ज्ञान की अंतिम सीमा ख़ुदा का भय है ।
٢٢٦ الامام زین العابدینؑ: سُبحانَکَ! أخشیٰ خَلقِکَ لَکَ أعلَمُھُم بِکَ، و أخضَعُھُم لَکَ أعمَلُھُم بِطاعَتِکَ، و أھوَنُھُم عَلَیکَ مَن أنتَ تَرزُقُہُ و ہُوَ یَعبُدُ غَیرَکَ!
२२६ . इमाम सज्जाद ( अलैहिस्सलाम ) : ऐ परवरदिगार , तू पाक व पाकीज़ा है । तेरे द्वारा बनाए गए सभी जीवधारियों में सब से अधिक तेरा भय रखने वाला व्यक्ति वह है , जो तेरी मारिफत सब से अधिक रखता है , और तेरे समक्ष उन में सब से अधिक झुका हुआ वह व्यक्ति है , जो सब से अधिक तेरी इताअत करने वाला है , और उन में सब से अधिक नीचा व तुच्छ व्यक्ति वह है , जिस को तू भोजन पहुंचाता है , और वह तेरे अतिरिक्त किसी अन्य की इबादत करता है ।
٢٢٧الامام الصادقؑ: کَفیٰ بِخَشیَةِ اللہِ عِلمًا، و کَفیٰ بِالا غِتِرارِ بِہِ جَھلًا۔
२२७ . इमाम सादिक़ ( अलैहिस्सलाम ) : ज्ञान से ख़ुदा का भय उत्पन्न हो जाए , तो इतना ही पर्याप्त है , और ज्ञान से लापरवाही ही जिहालत के लिये पर्याप्त है ।
٢٢٨عنہؑ: انَّ أعلَمَ النّاسِ بِاللہِ أخوَفُھُم لِلّٰہِ، و أخوَفُھُم لَہُ أعلَمُھُم بِہِ، و أعلَمُھُم بِہِ أزھدُھُم فیھا۔
२२८ . इमाम सादिक़ ( अलैहिस्सलाम ) : बेशक , लोगों में सब से अधिक ख़ुदा की मारिफ़त रखने वाला व्यक्ति वह है , जो उस से बहुत अधिक भय रखता है , और सब से अधिक भयभीत व्यक्ति वह है , जो सब से अधिक उस के सम्बन्ध में ज्ञान रखता है , और उस के सम्बन्ध में सब से अधिक ज्ञान रखने वाला व्यक्ति वह है , जिस को संसार का मोह सब से कम है ।
٢٢٩فی مِصباحِ الشَّریعَةِ قالَ الصّادقؑ: نَجوَی العارِفینَ تَدورُ عَلیٰ ثَلاثَةِ اُصولٍ: الخَوفِ، والرَّجاءِ، والحُبِّ۔ فَالخَوفُ فَرعُ العِلمِ، و الرَّجاءُ فَرعُ الیَقینِ، والحُبُّ فَرعُ المَعرِفَةِ۔
२२९ . मिस्बाहुश्शरीया में इमाम जाफ़र सादिक़ ( अलैहिस्सलाम ) इरशाद फ़रमाते हैं , "मुनाजाते - आरिफ़ीन के तीन नियम हैं , पहला , भय , दूसरा , आशा , तीसरा , प्रेम । भय ज्ञान की शाखा , आशा विश्वास की शाखा , और प्रेम मारिफ़त की शाखा है ।"
٢٣٠أیضاً: الخَشیَةُ میراثُ العِلمِ، والعِلمُ شُعاعُ المَعرِفَةِ و قَلبُ الٔایمانِ، و مَن حُرِمَ الخَشیَةَ لا یَکونُ عالِمًا و ان شَقَّ الشَّعرَ بِمُتَشابِھاتِ العِلم۔
२३० . मिस्बाहुश्शरीया में ही इमाम जाफ़र सादिक़ ( अलैहिस्सलाम ) इरशाद फ़रमाते हैं : ( ख़ुदा का ) भय ज्ञान की मीरास है , और ज्ञान मारिफ़त की किरण और ईमान का हृदय है ।
٢٣١ابنُ عَبّاسٍ العَمِّیّ : بَلَغَی أنَّ داوُدَ النَّبیَّؑ کانَ یَقولُ فی دُعاءہِ: سُبحانَکَ اللّٰھُمَّ أنتَ رَبّی، تَعالَیت فَوقَ عَرشِکَ و جَعَلتَ خَشیَتَکَ عَلیٰ مَن فِی السَّماواتِ و الَٔارضِ، فَأَقرَبُ خَلقِکَ مِنکَ مَنزِلَةً أشَدُّھُم لَکَ خَشیَةً، و ما عِلمُ مَن لَم یَخشَکَ؟! و ما حِکمَةُ مَن لَم یُطِع أمرَکَ ؟!۔
२३१ . : इब्ने अब्बास ( का बयान है ) : मुझ को यह सूचना मिली है , कि हज़रत दाऊद ( अलैहिस्सलाम ) दुआओं में यह कहा करते थे , कि ऐ परवरदिगारे - आलम , तू पाक व पाकीज़ा है । तू ही मेरा पालने वाला है । तू उच्च रुतबे वाला तथा अर्श व कुर्सी से उच्च स्थान पर है । तू ने धरती व आकाश वालों के हृदयों में अपना भय डाल दिया है । तमाम जीवधारियों में तेरे सब से अधिक निकट वह है , जो अपने हृदय में सब से अधिक तेरा भय रखता है । वह कैसा ज्ञानी व्यक्ति है , जो तेरा भय नहीं रखता , और वह कैसा हिकमत वाला व्यक्ति जो तेरा फ़रमांबरदार नहीं है !